पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं |
दिन रात दौड़ती दुनिया में ,
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं |
माँ की लोरी का एहसास तो है ,
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं |
सारे रिश्तो को तो हम मार चुके ,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं |
सारे नाम मोबाइल में है ,
पर दोस्ती के लिए वक़्त नहीं ,
गैरों की क्या बात करे ,
जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं |
आँखों में है नींद बड़ी ,
पर सोने का वक़्त नहीं |
दिल है ग़मों से भरा हुआ ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं |
पैसों को दौड़ में ऐसे दौड़े ,
की थकने का भी वक़्त नहीं |
पराये एहसासों की क्या कदर करे ,
जब अपने सपनों के लिए ही वक़्त नहीं |
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी '
इस ज़िन्दगी का क्या होगा ,
की हर पल मरने वालों को ,
जीने के लिए भी वक़्त नहीं .......
वर्तमान परिस्थितियों पर अच्छी रचना ,बधाई ।
ReplyDeletewaqt nahi....uttaradhunikta par kataksh or aaj ka sach bya karti aapki kavita bahut achhi lagi ....bas issi tarah likhte rahen !!
ReplyDeleteJai hO Mangalmay HO
Madam Jo bhi kaha Jo bhi likha h wo sahi h magar humse contact kyu nahi kiya.............? koi prbm h kya?
ReplyDeletenahi yar bas jo dikta hai use shabdo me bayan kar diya......:)
Deletegreat...
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